विलुप्त हो रही पहचान को सहेजने का एक प्रयास, शक्ति से स्वयं को जोड़े रखने का प्रयास

हमारे बारे में

हम विसंगतियों के एक ऐसे जाल में निरंतर फंसे हुए हैं, जहाँ पर प्रकाश के साथ-साथ अंधकार की छाया चल रही है। हम विमर्श के उस दौर में हैं जहां पर सत्य को असत्य एवं असत्य को सत्य कहा जा रहा है।

जहां पर इतिहास एवं साहित्य के माध्यम से ऐसा विमर्श बनाया जा रहा है, जो लोक के सर्वथा विपरीत है। जहां लोक की आत्मा को लांछित किया जा रहा है, धर्मशास्त्रों पर विमर्श के विविध रूपों के माध्यम से आक्रमण हो रहे हैं। जो अर्थ नहीं है, वह अर्थ लाया जा रहा है।

फेमिनिज्म के नाम पर स्त्रियों को बाजार में लाने की पूरी तैयारी हो चुकी है और स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर भारतीय स्त्री विमर्श को लगातार अपमानित किया जा रहा है। भारतीय स्त्री विमर्श को पिछड़ा घोषित किया जा रहा है। यह हमारा सांस्कृतिक ध्वंस है क्योंकि स्त्रियाँ ही संस्कृति की वाहक हैं!

हमारी बेटियों के हृदय में उनके ही समृद्ध इतिहास, समृद्ध परम्परा के प्रति निरंतर विष भरा जा रहा है। ऐसे में वह भी यह नहीं देख पा रही हैं कि उनका इतिहास उन्नीसवीं शताब्दी से आरम्भ नहीं हुआ है, बल्कि वह तो अनंत काल से है, वह तो नित है, वह नित नवीन है।
स्त्रियों पर सबसे बड़ा हमला इसी फेमिनिज्म ने किया है। भारत में स्त्रियों की जो स्वतंत्रता थी, जो ज्ञान था, उन्हें लेकर जो भी सम्पन्नता थी, उसे थोपी गयी आजादी के विमर्श ने कहीं कोने में फेंक दिया है और हमारे समक्ष कई कन्याएं ऐसी आ गयी हैं, जिन्हें वास्तव में अपने मूल का भान ही नहीं है। उन्हें यह ज्ञान ही नहीं है कि उनकी पहचान कितनी विस्तृत है, कितना बड़ा आकाश था उनके पास!

यह पोर्टल एक छोटा सा प्रयास है, उसी पहचान के कुछ अंश लाने के लिए, कुछ अपनी बात कहने के लिए! आप सब मित्र जुड़ें, वार्ता करें एवं इस पोर्टल को सार्थक करें  

Scroll to Top