लाहौर की गलियों में अभी भी राजा जयपाल का आत्मबलिदान जीवित है!
समय बीत चला है, लाहौर अब हमारे लिए पड़ोसी मुल्क का एक शहर हो गया है। वहां जाकर किस्से ही बदल जाते हैं, जबकि साझे इतिहास को साझा करने वाले भाई साझे अस्तित्व से भी घृणा करते हैं। यह उस इतिहास का कैसा दुर्भाग्य है, कि वह अपनी बात को यहाँ आकर कह नहीं सकता …
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