स्त्री और चेतना
स्त्री और चेतनाहमारी एक दुनिया थी और था एक इतिहास!मूक नहीं था, उत्सव थे और था ज्ञान का उल्लास!स्पंदन था, देह का उत्सव था,हमने उकेरा था अपने प्रेम और देह दोनों को हीपन्नों पर!एवं चेतना तथा स्मृति में कहीं समा गईं थीं!कहाँ था इस विशाल देश में देह का बंधन,और यौनिकता कहाँ थी वर्जित?उन्मुक्त मदनोत्सव …