“आसरम एक दीख मग महीन, खग मृग जीव जंतु तहं नाहीं,
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी, सकल कथा रिषि कहीं बिसेखी!
अर्थात विश्वामित्र ने कहा “हे रामचंद्र, सुनिए! ब्रह्मा ने एक अत्यंत रूपवती अहल्या नाम की कन्या उत्पन्न की, और उसका विवाह गौतम ऋषि से कर दिया। इंद्र ने छल से एक बार गौतम का रूप बनाकर अहल्या से समागम किया। उसी समय ऋषि आ गए। इंद्र को जान लेने पर भी ऋषि के भय से अहल्या ने उसे छिपाने का यत्न किया। इस कपट को जानकार मुनि क्रोधित हुए और इंद्र को शाप दिया कि तेरे शरीर में एक हजार योनिया हों और जड़ता करने से अहल्या को पत्थर होने का शाप दिया”
अर्थात श्रीरामचरित मानस में यह स्पष्ट है कि अहल्या को यह भली भांति ज्ञात था कि जिस पुरुष के साथ उन्होंने समागम किया है, वह उनके पति नहीं है।
इसी प्रकार श्री वाल्मीकि रामायण में लिखा है
“तस्य अन्तरम् विदित्वा तु सहस्राक्षः शची पतिः ।
मुनि वेष धरो भूत्वा अहल्याम् इदम् अब्रवीत् ॥
ऋतु कालम् प्रतीक्षन्ते न अर्थिनः सुसमाहिते ।
संगमम् तु अहम् इच्छामि त्वया सह सुमध्यमे ॥
अर्थात
आश्रम में मुनि को अनुपस्थित देखकर शचीपति इंद्र ने गौतम का रूप धारण कर अहल्या से कहा
कि कामी पुरुष ऋतुकाल की प्रतीक्षा नहीं करते! हे सुन्दरी हम आज तुम्हारे साथ समागम करना चाहते हैं।
यह है इंद्र की बात! अब देखिये कि अहल्या क्या कहती हैं
मुनि वेषम् सहस्राक्षम् विज्ञाय रघुनंदन ।
मतिम् चकार दुर्मेधा देव राज कुतूहलात् ॥
अथ अब्रवीत् सुरश्रेष्ठम् कृतार्थेन अंतरात्मना ।
कृतार्था अस्मि सुरश्रेष्ठ गच्छ शीघ्रम् इतः प्रभो ॥
अर्थात हे रघुनंदन, मुनिवेश धारण किए हुए इंद्र को पहचानकर भी दुष्ट अहल्या ने प्रसन्नतापूर्वक इंद्र के साथ कौतुहल वश भोग किया। और फिर वह इंद्र से बोलीं कि हे इंद्र मेरा मनोरथ पूरण हुआ, अत: हे इंद्र, मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ, अब तुम यहाँ से शीघ्र चले जाओ!”
बाद में जब गौतम ऋषि के आने पर शाप की कहानी सभी को पता है। प्रभु श्री राम की प्रतीक्षा में जड़वत अहल्या की कहानी भी सभी को पता है।
जब आपके पास तथ्य उपस्थित हैं कि अहल्या ने पर पुरुष से समागम किया था, तो बार-बार यह झूठ कहना कि एक छली ने उसे छला था, कितना गलत है। गलत इसलिए है क्योंकि यह विमर्श की दिशा बदल देता है। यह आपको यह विश्वास करने पर बाध्य करता है कि एक स्त्री इतनी बेवक़ूफ़ होती है कि वह अपने पति के स्पर्श को न पहचान पाए?
और वहीं वह आपके ही तमाम पुरुषों को कठघरे में खड़ा करती है कि देखो एक पुरुष ने आकर छला, एक ने शाप दिया और एक कथित पत्थर के रूप से उबारा!
प्रभु श्री राम ने अहल्या की तपस्या को पूर्ण किया। क्योंकि यह उन्हें करना ही था, अहल्या की तपस्या को पूर्ण होना ही था क्योंकि अहल्या ने एक गलती की थी और वह किसी भी स्त्री से हो सकती है। वह स्त्री-सुलभ गलती थी, जिसके चलते उन्हें सामाजिक तिरस्कार झेलना पड़ा। जडवत हो जाना यही है कि जब पता चले कि पर-पुरुष के साथ समागम किया है तो पति की सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होती है और सामजिक प्रतिष्ठा के धूमिल होने के बाद कोई भी पुरुष समाज का तब तक सामना नहीं कर सकता है जब तक कि उसे एक ऐसे व्यक्ति से सामाजिक स्वीकृति न मिल जाए, जो तारणहार माना जाता है।
और प्रभु श्री राम तो स्वयं विष्णु के अवतार थे जो आए ही थे गलतियों की क्षमा देने के लिए! जो आए ही थे यह समझाने के लिए कि विवाहिता स्त्रियों की एक सीमा होती है और पति गौतम जैसे हों तो पत्नी को छली को बचाना नहीं चाहिए।
परन्तु अहल्या प्रकरण में बार-बार दक्खिन टोले और वाम टोले दोनों की ओर से अहल्या की गलती को दबा दिया जाता है। दक्खिनी टोले के भी लेखक यही कहते हैं कि एक छली आ गया था और वाम टोले की लेखिकाएं भर-भर आंसू बहाती हैं कि हाय आदमियों ने पीड़ित किया था अहल्या को?
क्यों भाई? दक्खिनी टोले के स्टार लेखकों, आपको अहल्या की इस गलती को बताने में समस्या क्या है? बताएं कि स्त्रियों के स्त्री सुलभ भटकाव के बाद भी भगवान की भक्ति और तपस्या आपको वह स्थान प्रदान करती है, जो कोई अन्य सभ्यता सोच भी नहीं सकती है।
हीनता का विमर्श इतना पसरा क्यों है भाई? प्रभु श्री राम की कथाओं की बात हो, और उन पर सही विमर्श हो, न कि विमर्श की दिशा भटक जाए
तथ्यों पर बात होना इसलिए आवश्यक है कि जिससे हमारे प्रभु श्री राम पर आक्षेप लगाने का कोई भी अवसर किसी को न प्राप्त हो, जैसे वाम टोले की लेखिकाएं करती हैं, जब वह लिखती हैं कि
करनी किसी की भी हो,सतायी नारी जाती है ।
हवस हो इन्द्र की,अहल्या पत्थर बनायी जाती है ।।
और ऐसी ही एक वेबसाइट है कविताकोश, उसमें एक कविता पर नजर डालिए। देखिये कवियत्री अंजू शर्मा क्या कहती हैं
किन्तु
शापित नहीं होना है मुझे,
क्योंकि मैं नकारती हूँ
उस विवशता को
जहाँ सदियाँ गुजर जाती हैं
एक राम की प्रतीक्षा में,
इस बार मुझे सीखना है
फर्क
इन्द्र और गौतम की दृष्टि का
वाकिफ हूँ मैं शाप के दंश से
पाषाण से स्त्री बनने
की पीड़ा से,
तो वहीं रामायण को मिथकीय मानने वाली उत्तिमा केशरी एक कविता अहल्या एक रासायनिक पदार्थ” में पितृसत्ता को लक्ष्य बनाते हुए लिखती हैं
तीर्थ को क्या गए/
कि/
इंद्र ने छल से कर लिया/तुम्हें वरण
तुमनेही तो कहा था अहल्या कि हे गौतम ऋषि
तुम तो किरण विज्ञान के ज्ञाता हो
तम के पार जाने की क्षमता है तुममें
क्योंकि तुम गौतम हो!
मैं तो एक रासायनिक पदार्थ हूं
तुम्हारे प्रयोगशाला के
इंद्र है सूरज मंडल के अंतस की किरण
और श्राप दिया, यही तो थी उनकी खोज/जब तक पूरी नहीं हुई खोज
मैं प्रयोगशाला में स्थापित रही।
आखिर कब करोगे प्राण प्रतिष्ठा
इस रासायनिक पदार्थ में?
उतर दो न
हे महामानव गौतम ऋषि’
ऊपर श्री रामचरितमानस एवं वाल्मीकि रामायण के तथ्यों को पढ़ें और फिर इन कविताओं को पढ़ें, क्या इनमें सत्य का आभास प्राप्त होता है?
आवश्यकता है तथ्यों पर बात करने की, न कि अपनी कल्पनाशीलता के घोड़े दौड़ाकर तथ्यों को नष्ट करने की