मोपिला जीनोसाइड 1921: जब मोपिला मुस्लिमों के द्वारा काटे गए अपने आगे लटके सिर को लेकर दौड़े थे केलप्पन

वर्ष 1921 में मालाबार के हिन्दुओं के साथ मोपिला मुस्लिमों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की हर सीमा पार हो रही थी। लूटपाट हत्याएं सभी उनके साथ आम थीं। अवोकर मुसलियार, जो उस समय कालीकट तालुक में बहुत प्रभावी था। उसके सामने आसपास के क्षेत्रों के कई हिन्दुओं को लाया जाता था। कई बार परिवार भी आते थे। उन्हें इस्लाम में आने की दावत दी जाती थी।

जो दावत स्वीकार कर लेते थे, उन्हें इस्लाम में ले लिया जाता था, और जो अस्वीकार कर लेते थे उन्हें मार दिया जाता था। उनका सिर तलवारों के नीचे रख दिया जाता था। इल्लोम में एक कुआं है। जो हिन्दू इस्लाम की दावत को नहीं स्वीकारते थे, उनका सिर काटकर उन्हें कुँए में फेंक दिया जाता था। और इस प्रकार मरे हुए लोगों को ठिकाने लगाया जाता था।

इस कुँए में 50 से 60 लाशें मिली थीं। केलप्पन नामक एक हिन्दू युवक के प्राण बहुत ही चमत्कारिक तरीके से बचे थे। वह उन सभी भयावह स्थितियों की कहानी बताने के लिए बच गए थे। उनकी गर्दन पर तलवार से वार किया गया था और उनका सिर आगे की तरफ लटक गया था। दूसरों के सिर उनकी गर्दन से अलग हो गए थे और इस प्रकार सभी को उस कुँए में डाल दिया गया था।

जिन्होनें हिन्दुओं की गर्दन काटी थी, उन्हें यह तनिक भी नहीं पता था कि कोई बच भी गया होगा। और सभी को टांग से पकड़ कर कुँए में डाल दिया।

वह कुआं पूरी तरह से लाशों से भरा था। केलप्पन को सबसे ऊपर डाला गया और वह खुद को लाशों के बीच बचाए रहे। दो घंटे बाद कुँए में लटकती एक लता से वह बाहर आए और खुद को उन्होंने पेड़ों के पीछे छिपाया। तभी बारिश हुई और उनमें कुछ जान आई। उन्होंने उस क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए रात का इंतज़ार किया और जो सिर उनका आगे की ओर लटक रहा था, उसे थामते हुए चलता रहे।

वह 8 से 9 मील तक ऐसे ही चलते रहे और फिर सुबह आठ बजे उन्हें बेहोशी की हालत में पाया गया। उन्हें सब इन्स्पेक्टर ने इलाज के लिए भेजा था और उनका एक महीने तक इलाज चला था।

(वर्ष 1922 के 29 जुलाई 22 के मुकदमा संख्या 32 ए में निर्णय का अंश)

संदर्भ –THE MOPLAH REBELLION, 1921 –दीवान बहादुर सी गोपालन नायर

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