अय्याशियों की दास्तान: मुग़ल शहजादों का जीवन

मेहरुन्निसा को देखते हुए जहाँगीर क्या सोचा करता होगा? कैसा लगा होगा जब मेहरुन्निसा का निकाह करा दिया गया था और फिर बाद में वह उसे मिली थी। जहांगीर ने सलीम से लेकर जहांगीर तक का सफ़र तय किया था? वह इश्क का ही तो सफर करके आया था। न जाने कितना लम्बा! जब से मेहरुन्निसा को देखा था, तभी से उसे इश्क हो गया था। उसका जी चाहा था कि वह निकाह कर ले, पर शहजादों के निकाह कब उनकी मर्जी से हुए हैं। शहजादे तमाम तरह के विरोधाभासों के साथ पलते बढ़ते हैं, कहने को पूरी दुनिया के बादशाह, मगर हकीकत में वह दिल में उसे नहीं बैठा सकते, जिससे वह इश्क करते हैं। फिर यह दुनिया मिल भी जाए तो क्या है?

दानियाल के पास क्या नहीं था? सब कुछ तो था? मगर शहजादों के पास सब कुछ होना ही उनका इंसान होना छीन लेता है। और उन्हें इंसान से परे केवल क्रूर कठपुतली बना देता है! वह किले से बाहर अपनी नजर से देख नहीं पाते! प्यालों से दुनिया शुरू होती है और प्यालों से खत्म! मुराद खत्म हुआ था। मगर दानियाल? उसका खत्म होना बहुत दर्दनाक था। शहजादे अय्याशियों का शिकार होते हैं और उन अय्याशियों के साथ साथ उनमे क्रूरता पैदा होती है। वह चाहते हैं कि यह अय्याशियाँ न जाएं, फिर चाहे वह रहें या न रहें!

सलीम ही कौन सा अलग था? प्याला और हुस्न, दो ही चीज़ों से तो उसे इश्क था!

जहांगीर, यह समझ नहीं पा रहा था कि वह इश्क की चादर में वह सारे खून छिपा रहा है जो अब तक उसने किए! यह इश्क भी कितना अजीब होता है? मज़हब से इश्क करता था जहांगीर तो काफिरों को मरवा दिया, यातनाएं दीं! यह मज़हब से किये गए इश्क का नतीजा था। अपनी बादशाहत से इश्क किया तो अपनी औलाद को ही करीब करीब अंधा करा दिया! खुसरो को पनाह देने के आरोप में सिक्खों के गुरु अर्जुन देव को दर्दनाक मौत दी, ऐसी मौत जो आने वाले विद्रोहों का रास्ता बंद कर दे। मगर जब गर्म रेत अर्जुन देव पर डाली जा रही थी, तब बगावत थम नहीं रही थी, बगावत सुलग रही थी।

सलीम, नूरुद्दीन जहांगीर तो बन गया था, मगर अभी भी तमाम ऊहापोहों से घिरा हुआ था। वह सब कुछ था, और कुछ भी नहीं!

मेहरुन्निसा को चाहा, तो शेर अफगन के साथ निकाह कर उसे बंगाल भेज दिया गया था। अब जब सलीम जहांगीर बन गया था, तो वह उस इंसान से भी छुटकारा पा सकता था जिसे उसने खुद ही शेर अफगन की उपाधि दी थी। और पाना ही था, मेहरुन्निसा को नूरजहाँ भी बनाना था!

वैसे तो शहजादों के ही इश्क की गिनती नहीं करनी चाहिए और अब तो वह बादशाह था! अब क्या! बीसवीं बेगम के रूप में मेहरुन्निसा चाहिए थी! उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार था। बंगाल में विद्रोह तो एक बहाना था, मकसद था मेहरुन्निसा को पाना। उसने यह नहीं सोचा कि वह जिससे इश्क करता है उसे पाने के लिए उसे बेवा कर रहा है? शहजादे और बादशाह ऐसा नहीं सोचते! वह तो अपनी हवस के लिए किसी भी पद्मावती को जौहर भी करा देते हैं। “हुंह! जौहर ये बेवकूफ राजपूतानी औरतें करती हैं! समझदार औरतें नहीं!”

बादशाह को यकीन था कि इतिहास उसके इश्क में किए गए उस खून को माफ़ कर देगा! जब सीधी उंगली से घी न निकले तो टेढ़ी करनी ही होती है! बादशाह को यह यकीन था कि उसके इस कदम को आगेजाकर इतिहास में सहज मान लिया जाएगा, बादशाह को यह यकीन था कि एक बार जब इतिहास लिखवाना शुरू करेगा तो शेर अफगन के खून को बंगाल का विद्रोह कहलवाकर वह खुद को पाकसाफ साबित करा देगा!

आज इतिहास में नूरजहाँ और जहांगीर की प्रेम कहानी ही बिकती है, गायब है तो बस शेरअफगन के साथ किया गया अन्याय! अकबर और उसके बेटे जहांगीर के बीच हुई कथित लड़ाई में वह एक मोहरा था! बादशाह और शहजादे अपने प्यादों को मनचाहे रूप से इस्तेमाल करते ही हैं,

शेर अफगन बिना कुसूर अपनी जान गंवाकर भी खलनायक है, अर्जुन देव की देह पर गर्म रेत इतिहास की किताबों को नहीं जलाती! क्योंकि आधिकारिक इतिहास केवल विजेताओं का होता है, विजेताओं के कुकर्मों को सही ठहराने का होता है! हमें कातिल और हवस से भरे सलीम को एक न्यायप्रिय और इश्क के डूबे हुए सलीम को बताने का होता है, और हम डूबते हैं सलीम के इश्क में, गुरु अर्जुन देव की जलती देह की गंध से धीरे धीरे दूर होते हुए, विमुख होते हुए

तथ्य पर आधारित कथ्य

6 thoughts on “अय्याशियों की दास्तान: मुग़ल शहजादों का जीवन”

  1. बहुत बुरा समय रहा होगा, जानवरों की तरह मानसिकता थी इनकी. जो महिलाएं मुगलों को लेकर लहालोट हुई जाती हैं, वो एक बार इस समय की कल्पना करके देखें. हरम में शामिल कर दिए जाने का मतलब ये नहीं कि आप बादशाह की बेगम का दर्जा पा गईं. ये केवल नर मादा टाइप का रिश्ता था, जिसमें एक नर जानवर कितनी ही मादाओं को अपने झुंड में रखकर उनसे शारीरिक आनंद ले सकता था. मादा की स्तिथि कमोडिटी से अधिक कुछ नहीं.

  2. Anshul Tandon

    ओहss..बेहद भयावह सत्य। हम भी अनजान थे।
    जब इनलोगों का इश्क इतना घृणित और, खौफनाक है, तो नफ़रतें कैसी होंगी।
    कोफ्त बस ये सोच सोच के होती है कि किस हद तक हम सबका ब्रेन वाश कर दिया गया है।
    अब कब तक सच समझाते, समझाते दिखाते आप और आप जैसे लेखक प्राणपण से मेहनत करते रहेंगे,,
    कब खुद से लोगो की आँखे खुलेंगी..खुद से
    सबकुछ देखते, जानते हुए भी घोर विडंबना है दुल्हनें, औरतें इनसे लिपट चिपट के इनके हाथों से साड़ी ब्लॉउज़ पहन रहीं हैं,,स्पा करा रही हैं… और मां बाप आँखे मूंदे बैठे हैं….

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