वह आलमगीर था। टोपियां सीकर गुजारा करता था, यह कहा जाता है, और यह लिखा भी हुआ है, इस लिखे गए को हमारी पीढ़ी में कूट कूट कर डाला भी गया है। वह बहुत ही संवेदनशील था, यह भी हमारी पीढी को जबरन याद करा दिया गया। पर जब याद आता है कि अपने पिता को कष्ट देने और सत्ता को हासिल करने के लिए आलमगीर औरंगजेब ने संवेदना की नई परिभाषा रचते हुए अपने भाई और अपने पिता के सबसे प्रिय पुत्र व उस समय जनता के प्रिय्र राजकुमार का कटा हुआ सिर उपहार मे भेजा था।
इतिहास की यह घटना उस नैरेटिव पर सबसे बड़़ा अट्टाहास है जो हमे बचपन से पढ़ाया गया था। यह कोई स्वाभाविक सत्ता लोभ की घटना नहीं है। जबकि उसी काल में दक्कन में एक नायक का उदय होता है। उसके पिता बीजापुर के दरबार मे अपनी सेवाएं देते थे। शिवाजी को भली भांति पता था कि बीजापुर के खिलाफ कदम उठाने का क्या परिणाम होगा। फिर भी स्वतंत्र राज्य की स्थापना के लिए वह हर कदम उठाने के लिए तैयार थे। जब बीजापुर के अधिपत्य वाले किलों पर अधिकार करने के कारण बीजापुर के सुल्तान ने साहजी को कैद कर लिया तथा उन्हें छोड़ने की शर्त यही थी कि शिवाजी को सामने प्रस्तुत किया जाए।
शिवाजी के पास उस समय कुछ भी नहीं था, न ही बहुत दुर्ग और न ही सेना। उनके पास परंतु एक सम्पत्ति थी और वह थी उनके मूल्य। पिता के प्रति प्रेम और दायित्व। यह बोध कि आज उनके पिता उनके ही एक सपने के कारण जीवन और मृत्यु के फेर मे हैं। शिवाजी को उनकी मां ने बताया था कि अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर प्रकार के कदम उठाए जाने चाहिए। शिवाजी को यह ध्यान था और उन्हे यह भी पता था कि उन्हें बीजापुर, मुगलों व पश्चिमी शक्तियों के संग लडने के लिए समय चाहिए।
समय की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए शिवाजी ने अपने कदम पीछे हटाए व अपने पिता को मुक्त कराया। शायद उन्होनें सोचा होगा कि दुर्ग तो मिल जाएंगे पर पिता तो एक ही बार मिलते हैं। शिवाजी के लिए अपना सपना आवश्यक था परंतु पिता की कीमत पर नहीं।
जबकि आज तक हमें सबसे महान मुगल की जो घुट्टी पिलाई गई उस्रने सत्ता के लिए न केवल अपने पिता को कैद किया था, बल्कि अपने पिता के सबसे प्रिय बेटे का कटा हुआ सिर भी उपहास स्वरूप भेजा था, इतना ही नहीं अपने मरे भाई को और जलील करने के लिए उसने दाराशिकोह की पत्नी रा ना दिल से निकाह करने का प्रस्ताव रखा। जो बहुत ही सुंदर थी। उसने औरंगजेब को उत्तर दिया कि वह जिस खूबसूरती के कारण उससे निकाह करना चाहता है, वह खूबसूरती नहीं रहेगी।और खंजर से अपना चेहरा बिगाड़ लिया। और आपको लगता है कि आज ही यजीदी लड़कियां आईएसआईएस से बचने के लिए चेहरा जला रही हैं।
इधर हमें पहाडी चूहा कहकर पढ़ाए हुए शिवाजी कैद में आई मुस्लिम स्त्रियों को ससम्मान उनके घर लौटा कर मूल्यों का एक नया मापदंड स्थापित करते हैं और दूसरी तरफ …………………………………….
खैर कहा ही गया है कि गढ़े हुए नायकों की महानता को सुई लेकर गढ़ा जाता है-