पिछले कई दिनों से मैं यही सोच रही थी कि क्या आदरणीय तुलसीदास जी ने श्री रामचरित मानस में गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या को निर्दोष बताया है? ऐसा इसलिए क्योंकि कई धारावाहिकों के माध्यम से गौतम ऋषि पहले ही मेरी दृष्टि में खलनायक बन गए थे, जिन्होनें इंद्र को तो दंड नहीं दिया था, अपितु अपनी पत्नी को दंड दे दिया था। कल मैं रात में बैठी थी तो अचानक से ही रामचरित मानस उठाकर बालकाण्ड में वहां गयी जहाँ पर यह उल्लेख था।
मैंने देखा कि आदरणीय तुलसीदास जी ने ऐसा नहीं लिखा है। उन्होंने लिखा है कि
आश्रम एक दीख मग माहीं। खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं॥
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी। सकल कथा मुनि कहा बिसेषी॥6॥
भावार्थ:-मार्ग में एक आश्रम दिखाई पड़ा। वहाँ पशु-पक्षी, को भी जीव-जन्तु नहीं था। पत्थर की एक शिला को देखकर प्रभु ने पूछा, तब मुनि ने विस्तारपूर्वक सब कथा कही॥6॥
दोहा :
* गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर।
चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर॥210॥
भावार्थ:-गौतम मुनि की स्त्री अहल्या शापवश पत्थर की देह धारण किए बड़े धीरज से आपके चरणकमलों की धूलि चाहती है। हे रघुवीर! इस पर कृपा कीजिए॥210॥
श्री वाल्मीकि रामायण में जो लिखा है, वह मैंने कई बार लिखा है। परन्तु यह सब जानने के बाद भी मैं कभी कभी उस मिथ्या विमर्श का भाग बन जाती हूँ, जो जानते बूझते मात्र हमारी धार्मिक कथाओं को बदनाम करने के लिए प्रचारित किया जाता है। फिर ऐसे में उन लोगों की विवशता का अनुमान ही लगाया जा सकता है, जिन्हें यह विमर्श और विमर्श को विकृत करने के कारण उत्पन्न हुए खतरे पता नहीं है।
रामायण में इस विषय में लिखा है:
जैसे अहल्या के विमर्श के चलते ही कई कथित लेखिकाओं ने हिन्दू धर्म को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और मैंने समय-समय पर ऐसी कुकविताओं की पोल भी खोली है। परन्तु प्रश्न यह है कि इन दिनों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नाम पर फैलाई गयी प्रभु श्री राम की छवि को किसने फैलाया? उस छवि का स्रोत क्या था? उस छवि को किन लक्षणों के आधार पर बनाया गया था? और सबसे महत्वपूर्ण कि किस उद्देश्य के लिए बनाया गया था, यह बिना जाने किस वर्ग ने सबसे अधिक प्रचारित की? यह प्रश्न अपने आप से इसलिए किए जाने की आवश्यकता है कि जिन्होनें उस तस्वीर को प्रचारित किया, उसने उस छवि को एवं वाल्मीकि रामायण में वर्णित प्रभु श्री राम के सौन्दर्य को पढने का भी प्रयास नहीं किया।
यह सत्य है कि हर भक्त के प्रभु श्री राम है और जैसी भावना जिसकी होती है प्रभु उसे वैसे ही दिखाई देते हैं। परन्तु जब महर्षि वाल्मीकि जो कि प्रभु श्री राम के समकालीन थे और जो सुन्दरकाण्ड में स्पष्ट लिखते हैं कि उनका वर्ण श्याम था तो जबरन उस छवि को क्यों प्रसारित किया गया जो पूरी तरह से गौर वर्ण की है।
विपुलांसो महाबाहुः कम्बुग्रीवश्शुभाननः।
गूढजत्रुस्सुताम्राक्षो रामो देवि जनै श्श्रुतः।।5.35.15
दुन्दुभिस्वननिर्घोष स्स्निग्धवर्णः प्रतापवान्।
सम स्समविभक्ताङ्गो वर्णं श्यामं समाश्रितः।।5.35.16
यह तस्वीर जिसने भी जिस उद्देश्य के लिए बनाई, इससे एक बात निकल कर और उभर कर आई कि विमर्श के नाम पर हम अभी भी शून्य ही नहीं बल्कि नकारात्मक है। सृजनात्मक स्वतन्त्रता के नाम पर मूल का ही सर्वनाश करना हम जानते हैं और इस बहाने आने वाली पीढी इस इस सीमा तक भ्रमित कर देते हैं कि वह हमारे ही आराध्यों पर प्रश्न उठाने लगती है।
जब एक बार नई पीढी के जनमानस में आप प्रभु श्री राम का गौर वर्ण बैठा देंगे तो वह महर्षि वाल्मीकि पर अविश्वास करके उस एआई पर विश्वास करने लग जाएगी जिसे न जाने कौन संचालित कर रहा है।
एक बात पूरी तरह से स्पष्ट होनी चाहिए कि धार्मिक ग्रंथों में दिए गए तथ्यों के साथ छेड़छाड़ और वह भी ऐसी जो कि नई पीढ़ी को पूरी तरह से भ्रमित कर दे, कतई भी स्वीकार नहीं होनी चाहिए। यह कार्य भी उतना ही घृणित है जितना कि कुमार विश्वास द्वारा उस गजल को गाया जाना कि माँ शबरी के आश्रम में प्रभु श्री राम माता सीता के साथ गए थे।
यह तथ्यगत अपराध है। जब भी आप तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करें तो यह स्पष्ट करें कि यह आपने अपनी कल्पना का प्रयोग किया है। वैकल्पिक अध्ययन के नाम पर जिस प्रकार प्रभु श्री राम को लेकर खेल किया गया है, वह शायद ही किसी के साथ किया गया हो। और आज तो हमारी नई पीढ़ी प्रभु श्री राम को कहीं न कहीं ऐसा शोषक मानती है जिनके कारण लक्ष्मण को वनवास जाना पड़ा और जिस कारण उर्मिला को पति का वियोग झेलना पड़ा।
जैसे तस्वीर को लेकर आपके मन में एक भ्रम उत्पन्न किया गया, वैसे ही लगातार विमर्श में प्रभु श्री राम के नाम को लेकर ही भ्रम उत्पन्न हो रहा है। एक ओर हम प्रभु श्री राम की ऐसी छवि प्रसारित कर रहे हैं, जिसमें वह वर्णन नहीं है, जो वाल्मीकि रामायण में है तो दूसरी और अतीक अहमद की हत्या को लेकर कथित प्रगतिशील वर्ग प्रभु श्री राम के नाम को कठघरे में खड़ा कर रहा है।
कथित प्रगतिशील वर्ग प्रभु श्री राम के नाम पर तंज कस रहा है। हमने स्वयं ही प्रभु के नाम को ऐसा कर दिया है कि कोई भी आए और कुछ भी लिखकर चला जाए क्योंकि कहीं न कहीं हम भी तो वही कर रहे हैं।
कथा को और रोचक बनाने के लिए आज के अनुसार सन्दर्भ प्रयोग किये जा सकते हैं, जिससे हमारी नई पीढ़ी हमारे प्रभु श्री राम का आदर करे एवं उनके मूल्यों को आत्मसात करे। परन्तु तथ्यों को तोड़मरोड़ कर या गलत प्रस्तुतीकरण अनुचित है। क्योंकि यदि हम तथ्य ही गलत लिखेंगे तो लोग भ्रमित होंगे। आज की तारीख में बहुत ही कम लोगों के पास अपने ग्रन्थ पढने का समय है। ऐसे में वह कथित राष्ट्रवादी लेखकों से यह आशा करता है, आस की टकटकी लगाए देखता है कि वह सही लिखेंगे या बोलेंगे।
और वह भी आगे उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाता है। ऐसे में जब लेखक ही महर्षि वाल्मीकि की रामायण के तथ्यों को गलत प्रस्तुत करेगा तो क्या होगा? जैसे उस छवि ने हमारे दिमाग में बसी छवि पर प्रहार तो कर ही दिया और बिना जनेऊ, बिना कुंडल के और बिना धनुष के प्रभु श्री राम को स्वीकार करवा दिया तो अन्य विवाद क्या प्रभाव छोड़ते होंगे?
ऐसे में नई पीढ़ी के पास यही चारा होगा कि “आपके राम जी की कुछ नहीं समझ आती है!!” क्या हम अपने पूर्वजों को अपनी नई पीढी के सामने झूठा प्रमाणित करना चाहते हैं? या उन्हें अप्रासंगिक करके स्वयं को आगे लाना चाहते हैं?
कथा में तथ्यों के साथ, छवि में छेड़छाड़ का परिणाम आज आपको समझ न आ पा रहा हो, परन्तु जब भी ऐसा कोई कार्य हम करते हैं तो कहीं न कहीं अपने आराध्य के प्रति हम नई पीढी को भ्रमित करते हैं और उस भ्रम के परिणाम से न ही मैं और न ही आप अपरिचित हैं।
आपकी आशंका बिल्कुल सही है।
यथार्थ!
हिन्दू समाज भेंड़ों की तरह व्यवहार करता है।