जैसे ही ट्रांस-वीमेन अर्थात ट्रांस महिला की बात आती है तो भारत में इसे हिजड़े के रूप में देखा जाता है, परन्तु यह हिजड़ा नहीं है, यह किन्नर नहीं है। यह ट्रांस-वुमन है अर्थात वह पुरुष जो पुरुष देह में हैं, परन्तु उन्हें लगता है कि वह महिला हैं, तो वह सर्जरी कराकर स्वयं यह चुनाव करते हैं। यह सर्जिकल प्रक्रिया से किया जाता है जैसा इन दिनों कई फिल्मों में दिखाया जा रहा है, जैसे चंडीगढ़ करे आशिकी आदि!
इसमें यह प्रश्न खड़ा होता है कि क्या यह ट्रांस-वीमेन अर्थात ट्रांस महिलाएं, महिलाओं के लिए कैसा आकाश रच रही हैं? एक ओर हैं महिलाएं, जो जन्म से ही महिला हैं। जो सामान्य हैं और उनमें नारी सुलभ कोमलता है। यदि वह खेलकूद में भी हैं, तो भी उनके अपने ही आयाम हैं, उनके आयाम पुरुषों के आयाम से बहुत अलग हैं। उनके मापदंड बहुत अलग हैं। क्या यह कल्पना की जा सकती है कि महिलाओं की प्रतिस्पर्धा में महिलाओं के बीच वह व्यक्ति भी महिला के रूप में प्रतिभागिता करे जो कुछ वर्ष पहले यौनिक रूप से पुरुष था और जिसकी बलिष्ठ देहयष्टि अभी भी पुरुष की है,
मगर चूंकि उसने यह कहा कि उसे पुरुष जैसा अनुभव नहीं होता है और उसे लगता है कि वह महिला है, तो वह सर्जरी या कुछ हार्मोनल ट्रीटमेंट के माध्यम से महिला बनकर उन्हीं प्रतिस्पर्धाओं में प्रतिभागिता कर सकता है, जिसमें महिलाएं प्रतिभागिता कर रही हैं।
यह ध्यान दिए जाने योग्य है कि जो भी पुरुष अर्थात पुरुष जननांगों के साथ महिला है, वह शारीरिक रूप से पुरुष ही है। मगर चूंकि उन्होंने स्वयं को महिला घोषित कर दिया है तो वह महिलाओं के बीच महिला बनकर ही खेल रहे हैं, उनके विमर्श में सम्मिलित हो रहे हैं और सबसे बड़ी बात कि वह महिलाओं के तमाम उन अधिकारों को खा रहे हैं, जिनके लिए पश्चिम की महिलाओं ने संघर्ष किया।
पश्चिम में महिलाओं ने अपनी आजादी के लिए एक लंबा संघर्ष किया है। यह भी ध्यान में रखा जाए कि महिलाओं को डायन मानकर जलाने की परम्परा पश्चिम में थी। यहाँ तक कि उनमें आत्मा तक नहीं मानी जाती थी क्योंकि उनका निर्माण तो पुरुषों के ही एक अंग से हुआ था। इसलिए उनमें आत्मा नहीं है। मगर धीरे धीरे उन्होंने संघर्ष किया और एक लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें वह तमाम अधिकार मिले, जो भारत में सदियों से स्त्रियों को प्राप्त थे।
परन्तु पश्चिम की महिलाओं का यह संघर्ष एक समय के बाद आकर फेमिनिज्म की भेंट चढ़ गया, जिसने महिलाओं के अधिकार के नाम पर पुरुषों के विरोध का रुख अपना लिया। परिवार को सबसे बड़ी बाधा माना जाने लगा और एक स्वस्थ विमर्श और संघर्ष जल्दी ही विकृत रूप में परिवर्तित हो गया। जो फेमिनिज्म महिलाओं की बात करता था, वह अब वोकिज्म में बदल गया है।
वोकिज्म के नाम पर अब लैंगिक और यौनिक पहचान को ही आपस में बर्बाद किया जा रहा है। बच्चे ने लड़का या लड़की किसी भी रूप में जन्म लिया हो, जब वह स्कूल जाएगा तो यह उस पर निर्भर करता है कि वह अपने लिंग का निर्धारण कर सकता है। यह विमर्श अब विकृत रूप लेकर पश्चिमी महिलाओं के ही विरुद्ध हो गया है। वह जिस मानसिकता के विरुद्ध लड़कर इतनी दूर आई थीं, अब वह वहीं पर वापस तो नहीं चली जाएँगी? यह प्रश्न इसलिए उठ खड़ा हुआ क्योंकि ट्रांस महिलाओं को महिला का ही दर्जा दे दिया जा रहा है।
उन्हें महिलाओं की प्रतिस्पर्धा में लड़ाया जा रहा है, उन्हें महिलाओं के विमर्श में सम्मिलित किया जा रहा है और इतना ही नहीं कई स्थानों पर तो महिला के कपडे पहनने वाले पश्चिमी पुरुषों को महिला की समस्याओं को समझने वाले विषयों पर आमंत्रित किया जा रहा है।
जैसे तालिबान और ईरान में मुस्लिम महिलाओं को उनकी देह के आधार पर विमर्श से बाहर किया जा रहा है, जैसे उन्हें सार्वजनिक स्थानों से, प्रतिस्पर्धाओं से एवं हर उस स्थान से बेदखल किया जा रहा है, जहां से वह एक सुसभ्य समाज का विमर्श उत्पन्न कर सकती हैं, वैसे ही पश्चिम में वोकिज्म के चलते यही ट्रांस-महिलाएं अर्थात देह से पुरुष एवं कथित रूप से मन से महिलाएं अब महिलाओं का प्रतिस्थानापन्न बनने लगी हैं। वह समाज से पूरी तरह से महिलाओं को गायब कर रही हैं।
यहाँ तक कि वह यह तक अपेक्षा करती हैं कि समलैंगिक महिलाएं भी उन्हीं के साथ सम्बन्ध बनाएं। एक अजीब विकृति ने पश्चिम में घर कर लिया है। ऐसा नहीं है कि यह भारत में नहीं है। भारत में भी है और यह बीमारी बहुत ही तेजी से फ़ैल रही है। इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि तमाम खेल प्राधिकरणों ने ट्रांस वीमेन अर्थात पुरुष से स्त्री बनी महिला के लिए महिलाओं के बीच प्रतिस्पर्धा को अनुमत कर दिया है। इससे शारीरिक रूप से बलशाली ट्रांस वीमेन उन सभी प्रतिस्पर्धाओं में विजयी घोषित हो रही हैं, जो महिलाओं के लिए हैं।
अर्थात एक प्रकार से महिलाओं को खेल से बाहर किया जा रहा है, उन्हें खेलों के लिए अनुपयोगी प्रमाणित किया जा रहा है। महिला का रूप धरे इन पुरुषों को तमाम ब्रांड्स द्वारा समावेशीकरण के नाम पर मॉडल बनाया जा रहा है।
अर्थात एक प्रकार से पश्चिम में महिलाओं ने जो अपने कट्टर ईसाई समाज से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया था, वह लेफ्ट वोकिज्म के माध्यम से उनसे छीने जा रहे हैं। अगले लेख में कुछ उदाहरणों के साथ और कैसे अपने बच्चों को बचाएं, इस पर चर्चा करेंगे।
Bahut sunder vichar
धन्यवाद