आज 5 मई 2023 है! कहने के लिए आम दिन है, परन्तु आज का दिन इसलिए स्मरण करना चाहिए, क्योंकि तीन वर्ष पहले आज के ही दिन वह घटना हुई थी, जो एजेंडा सिस्टरहुड अर्थात बहनापे की पोल खोलती है. कहने के लिए बहनापा बहुत ही प्यारा शब्द है, एक सपना है, परन्तु क्या आप जानते हैं कि आज का ही दिन था, जिस दिन बहनापे के विमर्श ने कूदकर आत्महत्या कर ली थी. आइये जानते हैं कैसे?
आइये जानते हैं कि कैसे एक रिजवाना तबस्सुम की आत्महत्या के चलते बहनापे ने दम तोडा था. क्या किसी को यह पता भी है कि रिजवाना तबस्सुम ने क्यों आत्महत्या की थी और वह थी कौन?

आखिर उसकी आत्महत्या और उस पर बहनापे वाली फेमिनिस्ट की चुप्पी क्यों महत्वपूर्ण है?
सिस्टरहुड एक सपना है, एक प्यारा सपना! हम सबका प्रिय सपना, कि हम सब बहनें हैं, हम सबका दर्द एक है, यदि एक स्त्री सताती भी है तो वह पितृसत्ता की वाहक है आदि आदि! सिस्टरहुड के विषय में Ntozake Shange ने कहा है कि सिस्टरहुड बहुत जरूरी है क्योंकि हम सभी को एक फैसला लेना है। हमेंखड़े रहना है। हमें एक दूसरे के पास और एक दूसरे के साथ खड़ा होना है, एक दूसरे के लिए दुआएं करनी हैं और हमें उन खुशियों और कठिनाइयों को साझा करना है जो आज पूरे विश्व में महिलाओं के सामने आते है। अगर हम अपने बारे में आवाज़ नहीं उठाएंगे तो हमें पितृसत्ता द्वारा शांत कर दिया जाएगा और फिर उसका कोई उद्देश्य नहीं होगा!”
Ntozake Shange एक अमरीकी ब्लैक लेखिका हैं।
अब आते हैं सिस्टरहुड को जमीन पर कैसे लाया जाए। यह देखने और सुनने में बहुत अच्छा लगता है मगर ऐसा होता नहीं है, मीटू के मामले में विनोद दुआ का नाम आते ही उनकी बेटी अपने पिता के पक्ष में खड़ी हो गयी थी, वह बहनापे या सिस्टरहुड के पक्ष में नहीं आई! खैर मुद्दा यहाँ पर और भी कुछ है! हम सब लडकियां गौरी लंकेश की हत्या के खिलाफ थीं, मैं उस विचार को समर्थन नहीं करती हूँ, फिर भी मैं गौरी लंकेश की हत्या के खिलाफ बोली थी, और अफसोस हुआ था। सिस्टरहुड शायद यही है।
अब आते हैं कुछ वर्ष पहले घटी इस घटना पर! तीन वर्ष पहले एक समाचार आया कि वायर, क्विंट और बीबीसी के लिए फ्रीलांसिंग पत्रकारिता करने वाली एक बेहद संभावनाशील पत्रकार ने आत्महत्या कर ली। उनकी खबरें पढ़कर उनकी वैचारिकी का पता बहुत चलता है कि आखिर वह क्या लिखती होंगी।
किसी भी राष्ट्र का युवा आत्महत्या करे, यह सबसे दुखद होता है। परन्तु हैरानी इस बात पर अधिक थी और अभी तक है कि उस लड़की द्वारा सपा के स्थानीय नेता पर स्पष्ट आरोप के बाद भी पत्रकार बिरादरी द्वारा उसकी हत्या पर कोई शोक नहीं व्यक्त किया गया। कुछ लोगों द्वारा जरूर शोक दिखाई पड़ता है, मगर फेमिनिस्ट वर्ग द्वारा वह भी नहीं दिखा।
जबकि जिन पोर्टल्स के लिए वह लिखा करती थी वह बेहद प्रगतिशील पत्रकारों द्वारा न केवल संचालित है अपितु इसमें जो पाठक हैं, वह भी एक्टिविस्ट हैं, बुद्धिजीवी हैं और पत्रकार हैं। रिजवाना की फेसबुक प्रोफाइल में वायर के लिए पत्रकारिता लिखना लिखा है, मगर वायर में भी अपनी पत्रकार की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को सज़ा दिलाने के लिए कोई आन्दोलन नहीं दिखा। न ही विमर्श हुए और न ही कुछ आवाजें हैं।
ऐसा क्यों है? क्या सारा आक्रोश केवल तभी होगा जब एजेंडा द्वारा संचालित होगा? जरा सोचिये यदि समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता के स्थान पर कोई टुच्चा मुच्चा सा जय श्री राम कहने वाला लड़का होता, जिसने रिज़वाना को आत्महत्या के लिए उकसाया होता तो भी हमारा आक्रोश इतना ठंडा रहता? प्रगतिशील मूल्यों का दावा करने वाली जनज्वार की वेबसाईट ने जरूर समाजवादी नेता शमीम नोमानी को जिम्मेदार ठहराया था और उससे पूछताछ भी हुई थी।
अब जरा विचारों के प्रति प्रतिबद्ध रिजवाना की आत्महत्या को देखें, जिसमें सपा नेता का नाम सामने आया था, मगर चुप्पी देखिये! जरा कल्पना करें उस सिस्टरहुड के ढोंग की, जो फर्जी राजनीतिक मामलों पर तो शोर मचाता है और रिजवाना की आत्महत्या पर मौन साध लेता है!

जरा सोचिये कि क्या रिजवाना किसी के पास शमीम के खिलाफ शिकायत नहीं लेकर गयी होगी? कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो ऐसा हुआ ही होगा कि वह दूसरे मज़हब के खिलाफ तो लिखती रहीं स्वतंत्र होकर, और उनके ही मज़हब वाला और कथित प्रगतिशील पार्टी के नेता के खिलाफ वह युद्ध हार गईं?
यह जो शांति है, वह सिस्टरहुड की भावना के खिलाफ है। यही शान्ति हमें बार बार यह जताने की कोशिश करती है कि कहीं न कहीं हम एजेंडा परक सिस्टरहुड के साथ हैं। जब तक आप हमारे एजेंडा पर चलती हैं हम आपके साथ हैं, और जैसे ही लड़की ने आपके एजेंडा के खिलाफ कुछ कहा या किया, या अपनी समस्या के बारे में बात की, आपको अकेला छोड़ दिया जाएगा। यह सब सही नहीं है!
कठुआ काण्ड पर शोर होगा और गाज़ियाबाद में एक मस्जिद में एक दस साल की बच्ची के बलात्कार पर यह कहा जाएगा कि बच्ची अपने आप गयी थी, इसलिए वह बलात्कार जायज़ है! ऐसा नहीं चलेगा! गौरी लंकेश की हत्या पर शोर और रिजवाना की आत्महत्या पर चुप्पी यह भी घातक है!
एजेंडा ड्रिवेन सिस्टरहुड नहीं चल पाएगा, और राजनीतिपरक सिस्टरहुड नहीं चल पाएगा! धर्मपरक सिस्टरहुड नहीं चलेगा, किसी धर्म विशेष को बदनाम करने वाला सिस्टरहुड नहीं चलेगा। केरल की उस नन के पक्ष में प्रगतिशील लेखकों की वाल पर एक भी खबर नहीं आई थी, जिन्होंने बिशप फ्रैंको मुलक्क्ल पर बलात्कार का आरोप लगाया था।
यह सिस्टरहुड का सबसे बड़ा अपमान है। हमारे लेखक वर्ग ने हजारों यजीदी लड़कियों को ईराक में यौन गुलाम बनाने पर एक भी पंक्ति नहीं लिखी जबकि वह हाल के दिनों का सबसे जघन्य काण्ड था। यह सिस्टरहुड नहीं हो सकता। हमने उन तमाम स्त्रियों के बारे में एक भी शब्द नहीं लिखा जिन्हें सुदूर अफ्रीका में बोकोहराम के आतंकियों ने इसलिए रौंद डाला क्योंकि उन्हें अपनी सेना के लिए नए लड़ाके चाहिए थे
5 मई 2023, याद रखा जाना चाहिए, सिस्टरहुड के सबसे बड़े नाटक के लिए