आज अर्थात 12 जून को विश्व बालश्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। बहुत ही कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि यह दिवस जो पूरे विश्व में बाल श्रम का निषेध करने के लिए मनाया जाता है, उसका आरम्भ एक भारतीय के हाथों हुआ था। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा आयोजित यह दिवस बच्चों के पति हमारे उत्तरदायित्वों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है।
यह दिन नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के प्रयासों का परिणाम है। और कथित विकसित देशों के सामने यह भारत की आवाज थी जो बच्चों के शिक्षा के अधिकार को लेकर मुखर हुई। आज पश्चिमी देशों की बात करना इसलिए आवश्यक है कि क्योंकि पूरे विश्व या कहें भारत जैसे देशों में कथित पिछड़ेपन का आरोप लगाते हुए क्या पश्चिमी देश बच्चों के उन अधिकारों पर उचित कदम उठा रहे हैं, जिन्हें लेकर भारत के एक व्यक्ति द्वारा बाल श्रम निषेध दिवस का आयोजन किया जाता है?
trtworld की एक रिपोर्ट के अनुसार सप्लाई चेन्स में बाल श्रम के सबसे बड़ी उपयोगकर्ता विकसित देश ही हैं। कोविड के बाद से तो बाल श्रम पर बात करना और भी महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि उसके बाद आर्थिक स्थितियां बच्चों के लिए नई चुनौतियां लेकर आई हैं। ऐसे में एक भारतीय द्वारा आरम्भ किए गए उस दिन की महत्ता भी और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
इस रिपोर्ट में विश्व बाल दिवस के अवसर पर इस बात के विषय में चिंता व्यक्त की गयी थी कि विकसित देशों और यूरोपीय संघ, अमेरिका, कनाडा, जापान, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड जैसे ब्लॉकों की आपूर्ति श्रृंखलाओं में विशेष रूप से कॉर्पोरेटस के क्रूर और अवैध व्यापार मॉडल के कारण बाल श्रम में वृद्धि हुई है।
इस रिपोर्ट में मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार, राजनीतिक सलाहकार और सामाजिक उद्यमी फर्नांडो मोरालेस-डी ला क्रूज़ ने इस उसी बात को बताया था, जो कैलाश सत्यार्थी ने इतने वर्ष पहले बाल श्रम को लेकर कही थी कि बालश्रम बच्चों के मानसिक या मनोवैज्ञानिक विकास पर असर डालता है।
उन्होंने यह भी कहा था कि विकसित अर्थव्यवस्थाएँ और उनकी कंपनियाँ बाल श्रम के सबसे बड़े वित्तीय लाभार्थी हैं।
“हम यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका की आपूर्ति श्रृंखलाओं में काम करने वाले लाखों बच्चों के बारे में बात कर सकते हैं, और वही नॉर्वे और स्विटज़रलैंड के लिए जाता है। यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है, क्योंकि इन देशों में एक क़ानून के आधार पर एक प्रणाली होनी चाहिए और मानवाधिकारों के सम्मान पर बात होनी चाहिए। लेकिन जब आप उनकी आपूर्ति श्रृंखला और उनके निवेश को देखते हैं, तो वे सबसे कमजोर बच्चों के अधिकारों का सम्मान नहीं करते हैं।”
जहां यह रिपोर्ट पश्चिमी जगत और मीडिया के उस दोगले रूप को दिखाती है, जो भारत को उन मुद्दों पर घेरते हैं, जिन पर वह निरंतर सुधार के पथ पर आगे बढ़ रहा है और लगातार जनसम्वेदना के आधार पर कदम उठा रहा है। आज जब विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जा रहा है तो कम से कम यह बात तो होनी चाहिए कि पूरे विश्व के लिए विमर्श एवं सुधार का ठेकेदार बना पश्चिम उस भारतीय के स्वप्न पर क्या कदम उठा रहा है जो बच्चों को एक शोषण मुक्त आकाश देना चाहते हैं?
वहीं इसी वेबसाईट की तीन वर्ष पहले की एक और रिपोर्ट है जो कहती है कि एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन बच्चों के अधिकारों का सम्मान करने के मामले में दुनिया के सबसे खराब देशों में से एक है।
बात यहाँ पर देशों की नहीं है बल्कि बच्चों की है। वही बच्चे जिनके सपने मुक्त होने चाहिए, जिनकी मुस्कान निश्छल होनी चाहिए, जिनकी आँखों में अपने परिवार, अपने देश और अंतत: समूची मानवता के लिए कुछ कर गुजरने का स्वप्न होना चाहिए। परन्तु यह सभी तक हो पाएगा जब 12 जून को मनाया जाने वाला यह बाल श्रम दिवस हर देश के द्वारा खुलकर मनाया जाए, बाल श्रम की परिभाषा निर्धारित की जाए।
क्योंकि समय के साथ श्रम की परिभाषा भी बदल रही है। आज छोटे छोटे बच्चों की रील्स बनाकर एक अजीब प्रकार का शोषण किया जा रहा है, इससे लाइक्स एवं कमेन्ट की चाह के चलते उनका मानसिक विकास तो अवरोधित हो ही रहा है बल्कि साथ ही उन्हें ऐसे हाव-भाव सिखाए जा रहे हैं, जो कहीं से भी बच्चों के स्वाभाविक विकास के अनुकूल नहीं है।
आज का दिन पूरे विश्व को एक भारतीय कैलाश सत्यार्थी की निरंतर यात्रा द्वारा दिया गया स्वप्न है। यह यात्रा 1980 के दशक के आरम्भ में आरम्भ हुई थी और देखते ही देखते इस यात्रा ने एक नया ही रूप ले लिया था। बाल श्रम को लेकर उस समय कोई भी अंतर्राष्ट्रीय क़ानून नहीं था। कैलाश सत्यार्थी ने 1998 में ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ यानी वैश्विक जन जागरूकता यात्रा को आरम्भ किया था।
पांच महीने चली इस यात्रा में वह तमाम बच्चे भी शामिल थे जो कभी बाल मजदूर के रूप में कार्य कर चुके थे। इस यात्रा को डेढ़ करोड़ के लगभग लोगों का समर्थन प्राप्त था। विश्व के तमाम प्रधानमंत्रियों, नरेशों आदि के समर्थन के साथ जून 1998 में जब वह जिनेवा पहुंचे तो अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन अर्थात आईएलओ का अधिवेशन चल रहा था,
और फिर इतिहास रचा गया। आईएलओ ने कैलाश सत्यार्थी एवं उन दो बच्चों को मंच दिया जिन्होनें बाल श्रम की भयावहता पर बात के। इस यात्रा के बाद ही वर्ष 2002 में यह घोषणा की गयी कि अब से हर साल 12 जून को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाएगा।
आज का दिन जब बाल अधिकारों पर बात होती है तो इसका श्रेय बच्चों के लिए एक मुक्त आकाश का स्वप्न देखने वाले भारतीय कैलाश सत्यार्थी को ही है, भारत के उस लोक की आत्मा को है जो समाज को और बेहतर करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहता है।
featured photo- www.trtworld.com