भारत का कथित लिबरल वर्ग जो स्वयं को वैश्विक विमर्श के आधार पर संचालित करता है, वह कैसे उस वैश्विक विमर्श पर मौन रह जाता है, जो पूरे विश्व में चर्चा का विषय बनता है। स्वयं को वैश्विक विमर्श का ठेकेदार मानने वाला प्रगतिशील वर्ग उन काले कारनामों पर चुप रह जाता है, जो विश्व के सबसे बड़े रिलीजियस संस्थान अर्थात चर्च में हो रही हैं।
क्या वहां पर होने वाला शोषण उस विमर्श का हिस्सा नहीं है, जो इस वर्ग को करना चाहिए? आज हम कुछ ऐसी ही घटनाओं पर बात करेंगे जो 1 मई अर्थात उस दिन के आसपास घटित हुई थीं, जिसे यह प्रगतिशील वर्ग क्रान्ति का दिन मानता है, समानता का दिन मानता है, श्रम का दिन मानता है। क्या उस दिन उन तमाम शोषणों पर बात नहीं करनी चाहिए जो चर्च के नाम पर हुए हैं।
अप्रेल के आख़िरी सप्ताह में ही पूरे विश्व में ऐसे मामले आए जिनपर विमर्श बनना चाहिए था। ये आंकड़े हैं, आंकड़े जो प्रकट होते हैं वह विमर्श बनाते हैं। जैसे अभी हाल ही में जब दलाई लामा द्वारा एक बच्चे के साथ ऐसा कुछ हो गया, जो होना नहीं चाहिए था, तो उन्होंने क्षमा माँगी। सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा था। ऐसे ही यदि हिन्दू धर्म के किसी उपासक द्वारा यदि कोई घटना हो जाती है तो भी यही गुस्सा फूटता है, फिर उन घटनाओं पर यह क्रोध कहाँ चला जाता है जो घटनाएं चर्च के आंकड़े बढ़ाती हैं।
30 अप्रेल को theage में एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें मेलबर्न की उस घटना का उल्लेख था जिसमें 1970 और 80 के दशक में एक प्रीस्ट ने बच्चों का यौन शोषण किया था और उसे चर्च ने पीडोफिल वर्ष 2005 में पाया था, मगर उसके बाद भी वह एक दशक से अधिक समय तक चर्च में अपनी सेवाएं देते थे। फादर जोसेफ डोयले का निधन वर्ष 2021 में हो गया था, परन्तु उन पर बेजवाटर के आवर लेडी ऑफ लौर्देस प्राइमरी स्कूल के दो छात्रों ने यह आरोप लगाए थे कि उनका यौन शोषण उन्होंने किया था। फादर वहां पर वर्ष 2005 तक 37 वर्षों से अधिक तक प्रीस्ट के रूप में कार्यरत थे।
पूरे विश्व में इस समस्या को लेकर लेख लिखे जा रहे हैं, जिसमें बच्चों की यौन सुरक्षा को लेकर बात की जा रही है। जैसे jamaica-gleaner.com में प्रकाशित यह लेख, जिसमें मैरीलैंड अटॉर्नी जनरल एंथोनी ब्राउन से एक रिपोर्ट के शब्द हूबहू प्रस्तुत किए गए हैं कि “बार-बार, चर्च के पदानुक्रम के सदस्यों ने यथासंभव लंबे समय तक बाल यौन शोषण के आरोपों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया!”
इसी रिपोर्ट में यह आरोप है कि 156 कैथोलिक क्लर्जी सदस्य और अन्य ने 60 वर्षों के दौरान लगभग 600 बच्चों का यौन शोषण किया है।
इसी रिपोर्ट का हवाला फिलिपिन्स के एक समाचार पोर्टल में दिया गया है जिसमें यह कहा गया है कि फिलिपीन चर्च में किसी भी बाहरी संस्था से किसी भी प्रकार की कोई भी पड़ताल नहीं कराई गयी है। चर्च में हो रहे बच्चों के यौन शोषण को लेकर एक चुप्पी रहती है और इसे क़ानून का मामला न बताकर चर्च का आतंरिक मामला बता दिया जाता है।
इसी में आगे लिखा है कि
“कागायान में एक कैथोलिक पादरी पर मुकदमा चल रहा है। फादर इज़राइल जेल में है, जमानत नहीं है, उस पर एक 15 वर्षीय चर्च स्वयंसेवक के खिलाफ कथित रूप से कई बलात्कार और यौन उत्पीड़न के अपराध का आरोप है। 62 वर्षीय फादर कोनराड मंटक को इस साल मार्च में 17 वर्षीय गाना बजानेवालों के साथ कथित बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। रीजनल ट्रायल कोर्ट के जज रेजिनाल्ड फुएंटेबेला ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया।“
ऐसी तमाम घटनाएं लगातार हो रही हैं। यह वैश्विक स्तर पर शोषण की बात करती है और जहां पर शोषण संस्थागत रूप से अधिक है एवं समूचा विश्व उस पर विमर्श कर रहा है, तब यहाँ पर राजनीतिक एजेंडा पोषित शोषण का विमर्श चलाया जा रहा है।
भारत का कथित वैश्विक विमर्श गढ़ने वाला प्रगतिशील लेखक वर्ग विदेशी कविताओं से बिम्ब उठाता है, वैश्विक रिलिजन के चश्मे से अपने लोक के धर्म को देखता है और फिर आयातित विमर्श गढ़ डालता है, परन्तु वह वैश्विक बिम्ब चोरी करते हुए वैश्विक विमर्श का शोषण क्यों नहीं देखता है?
यह तो वैश्विक विमर्श है, वह तो भारत में भी उन ननों के साथ नहीं खड़े हैं, जो शिकार हो रही हैं। फिर प्रश्न उठता है कि जब आपकी तमाम विचारधारा आयातित है, जब आपके सन्दर्भ आयातित हैं और जब आपके बिम्ब तक आयातित हैं तो आप वैश्विक स्तर पर चल रहे शोषण के विमर्श से क्यों अछूते हैं? क्या आपको केवल बिम्ब चुराने हैं और चुराकर अपने लेखों में, कविताओं और कहानियों में डालना है?
यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर भारतीय प्रगतिशील लेखक वर्ग के पास तनिक भी नहीं होगा!