23 अगस्त 2023: झारखंड की अंकिता को शाहरुख द्वारा आग लगाए जाने का एक वर्ष: विमर्श में क्या कुछ बदला?

23 अगस्त 2022 को झारखंड में एक ऐसी घटना हुई थी, जिसके बाद एक नया और बहुत ही हैरान करने वाला विमर्श आरम्भ हुआ था। 23 अगस्त 2022 को झारखंड की अंकिता को उसके घर में शाहरुख ने आग लगाकर जला दिया था।

यद्यपि वह बच्ची बेचारी कई दिनों तक जीवन और मृत्यु के मध्य संघर्ष करती रही थी, मगर एक बहुत बड़ा और स्वयं को कथित मानवतावादी कहने वाला तो अंकिला के जलाए जाने पर शांत रहा ही थी, जो उसकी आदत है, मगर कुछ लोग यह तक कहने लगे कि प्यार में धोखे की कहानी थी आदि आदि।

परन्तु ऐसे बहुत ही कम लोग थे जिन्होनें यह जानने का प्रयास भी किया हो कि क्या वास्तव में ऐसा था? क्या वास्तव में वही था जो दिखाया जा रहा था? भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार शाहरुख के खौफ में अंकिता पिछले दो वर्ष अर्थात 2022 से जी रही थी। वह उसे परेशान करता था। उस पर शादी करने का और दोस्ती करने का दबाव डालता था।

दैनिक भास्कर ने अंकिता के भाई के हवाले से बताया था कि

मेरी दीदी आग से झुलसी हुई घर में इधर-उधर भाग रही थी और पापा उसके शरीर में लगी आग को बुझाने के लिए काफी कोशिश कर रहे थे। वह दर्द से चिल्ला रही थी और पापा से बचाने की बार-बार गुहार लगा रही थी। मैं और मेरी दादी जो एक साथ बगल के कमरे में सोए हुए थे, दीदी की ऐसी हालत देखकर जोर-जोर से रोने लगे। मयंक ने बताया कि पापा पेट्रोल से बुरी तरह झुलसी दीदी को टोटो पर लादकर दुमका के फूलों झानो मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले गए।

23 अगस्त को शाहरुख ने अंकिता को आग लगाई थी। और वह बच्ची 29 अगस्त को जीवन का यह युद्ध हार गयी थी। फिर उसके बाद बेशर्मी का नंगा नाच देखा गया। कई लोगों ने अंकिता और शाहरुख के मॉर्फ किए गए चित्रों को साझा करना शुरू कर दिया, बिना यह प्रश्न उठाए कि यदि यह चित्र सही होते, तो उसके मरने का इंतजार क्यों किया जाता?

अंकिता का जो वीडियो था, जिसमें वह कह रही है कि “जैसे हम तड़प कर मर रहे हैं, वैसी ही सजा उसे हो जाए!”

वह बच्ची जान रही थी कि वह अब शायद नहीं बचेगी, परन्तु उसके मरने के बड़ा उसकी लाज के साथ ऐसी बेशर्मी की जाएगी, उसने ऐसा नहीं सोचा होगा। भास्कर के साथ बातचीत में उसने यह खुलकर बताया था कि कैसे शाहरुख उसे परेशान करता था। भास्कर में लिखा था कि

“अंकिता ने मौत से पहले दिए अपने बयान में कहा कि जब भी मैं स्कूल या ट्यूशन के लिए जाती, शाहरुख मेरा पीछा करता। हालांकि, मैंने कभी उसकी हरकतों को सीरियसली नहीं लिया, लेकिन उसने कहीं से मेरे मोबाइल का नंबर हासिल कर लिया था। उसके बाद अक्सर मुझे फोन करके मुझसे दोस्ती करने का दबाव बनाने लगा। मैंने उसे स्पष्ट कर दिया था कि मुझे इन सबसे कोई लेना-देना नहीं है।“

इतना ही नहीं, शाहरुख को बचाने के लिए अंकिता की उम्र को 19 वर्ष तक करके बता दिया था, अर्थात उस पर पौक्सों अधिनियम की धारा न लग सके ऐसा भी प्रयास किया गया था। वहीं शाहरुख के सहयोगी नईम ने भी कई लड़कियों को अगवा करके यौन शोषण किया था।

एसडीपीपो नूर मुस्तफा ने, जिन्होनें अंकिता की उम्र को 19 वर्ष बता दिया था, उन्हें जांच से हटा दिया गया था। अंकिता की मार्कशीट के अनुसार उसकी उम्र मात्र 15 वर्ष 9 महीने थी।

फिर भी अंकिता के साथ जो जीतेजी अन्याय हुआ था, उसकी मृत्यु के बाद और भी अधिक अन्याय हुआ, जिसमें उसके चरित्र को तोड़ा गया, मरोड़ा गया। ऐसा दावा किया गया कि जो हुआ ठीक हुआ। शाहरुख की वह बेशर्म हंसी अकारण नहीं थी। उसे पता था कि हिन्दू समाज है ही ऐसा। वह अपनी मरी बेटी पर विश्वास नहीं करेगा, वह उसके साथियों द्वारा फॉरवर्ड की गयी तस्वीरों और उसके समूह द्वारा चलाए गए विमर्श पर विश्वास करेगा कि उस लड़की ने उसे धोखा दिया तो उसने जला दिया।

अंकिता की मृत्यु के बाद उसकी तस्वीरें वायरल करके उसकी मृत्यु जो सही ठहराने वाले कई लोग उस समय अचानक से उभर आए थे, जो तब तक शांत रहे थे, जब तक वह जीवित थी। जब वह तस्वीरों का सत्य बताने के लिए जीवित नहीं रही तो उसके साथ यह सब किया गया।

परन्तु मूल प्रश्न यही है कि शाहरुख के हाथों जलती जाने वाली अंकिता जैसी लड़कियों को हम विमर्श में कितना जीवित रख पाए हैं? क्या यह विमर्श बना भी पाए हैं कि हमारी बेटियाँ मारी जा रही हैं? क्या हम अंकिता जैसी बच्चियों की पीड़ा सुन भी पा रहे हैं?

आज 23 अगस्त 2023 को यह समाचार हुए एक वर्ष हो गया है कि शाहरुख ने अंकिता को आग लगाई, मगर उसके बाद से भी लगातार ऐसी घटनाएं आ रही हैं। बच्चियों को थामने के लिए हम तैयार क्यों नहीं हैं? अंकिता के मरते ही उसके विरुद्ध षड्यंत्र में क्यों सम्मिलित हो गया एक वर्ग?

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