लिव इन में मरती महिलाएं: परन्तु “महिलाओं की अपनी पत्रिका – गृहशोभा” ने कहा “लिव इन लड़कियों के लिए लाभदायक!”

महिलाओं की अपनी पत्रिका गृहशोभा अब परिवार एवं महिलाओं पर जोरदार हमला करने लगे हैं और दुर्भाग्य की बात यही है कि इस पत्रिका में कहानियां लिखने वाली और इस कचड़े को पढने वाली अधिकांश महिलाएं ही होती हैं। महिलाओं की अपनी पत्रिका का दर्जा खुद को देने वाली गृहशोभा में महिलाओं को रसोई तक सीमित रखने का अभी तक प्रयास होता था, जिसमें नए-नए व्यंजनों से लेकर सास-बहू की कहानियाँ हुआ करती थीं। महिलाओं की अपनी पत्रिका के नाम पर परिवार को लेकर महिलाओं के मन में विष भरने का कार्य यह कई वर्षों से करती चली आ रही है।

परन्तु जनवरी 2024 का अंक, महिलाओं के लिए एक ऐसी व्यवस्था को मसीहा बताते हुए आया है, जिसके कारण इन दिनों लड़कियां सबसे अधिक प्रताड़ित हो रही हैं। दरअसल गृहशोभा के सम्पादक को महिलाओं से कुछ लेनादेना न होकर केवल भारतीय जनता पार्टी और हिन्दू धर्म का अंधा विरोध करना है। पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के सांसद धर्मवीर सिंह ने लिव इन संबंधों पर कुछ टिप्पणी की थी और इस पत्रिका के सम्पादक को उस टिप्पणी से परेशानी हुई।

जब गूगल किया जाए कि लिव इन के चलते लड़कियों के साथ क्या होता है तो ख़बरें ही ख़बरें निकल कर आएंगी:

गृहशोभा में आम महिलाओं के नाम पर पूरी तरह से राजनीतिक एजेंडा चलाया जाता है और यह समय-समय पर दिखाई देता रहता है। इसमें जहेज के नाम पर मरने वाली मुस्लिम लड़कियों पर शायद ही कुछ बोला जाता हो। खैर! महिलाओं को मूल्य से रहित करने के लिए इसमें जहर भरा जा रहा है। सम्पादकीय में सम्पादक महोदय का कहना है कि “लिव इन रिलेशन में सबसे बड़ा लाभ लड़कियों को होता है, जो पुरुष साथी को जब चाहें छोड़ सकती हैं। मेल प्रेंड्स का उनकी बॉडी, ब्रेन या बैंक बैलेंस पर कोई परमानेंट हक़ नहीं होता। हिन्दू समाज को यह बहुत बुरा लगता है, क्योंकि सारे नियम रीति रिवाज, त्योहार इस दृष्टि से बनाए गए हैं कि औरतों के मन में यह बैठाया जा सके कि वे न तो किसी तरह की प्राइवेसी की, न संपत्ति की, न इन्डेपेंडेंस की हकदार हैं और न ही सेक्स सुख पाने की”

सम्पादक महोदय को सबसे बड़ी समस्या इस बात की है कि एक गैर-ब्राह्मण सांसद धर्मवीर सिंह ने ऐसा कह दिया? मगर भाजपा से घृणा में वह श्रद्धा जैसी लड़कियों का मिक्सी में पीसना भी भूल जाते हैं!

अब प्रश्न यह उठता है कि सम्पादक महोदय की नजर में सारी गैर ब्राह्मण लड़कियां लिव-इन में ही रहने लायक हैं? लिव इन में लड़कियों के क्या अधिकार होते हैं, क्या उन्होंने इस पर बात की है? लिव इन के चलते कितनी लड़कियों का शोषण और हत्याएं तक हो रही हैं, क्या महिलाओं की अपनी पत्रिका में इस पर बात तक होती है? लिव इन को लेकर माननीय न्यायालय समय समय पर क्या टिप्पणी करते रहते हैं, क्या इस पर इस पत्रिका पर बात होती है?

किसी पर भी नहीं होती है। क्या आंकड़ों पर महिलाओं की अपनी पत्रिका बोलती है कि कितनी बीमारियाँ लड़कियों में मल्टीपल सेक्स पार्टनर्स के चलते हो सकती है? क्या उस मानसिक प्रभाव पर महिलाओं की अपनी पत्रिका बात करती है, जो लिव-इन में रहने वाली महिलाओं के दिमाग पर पड़ता है?

महिलाओं की अपनी पत्रिका ने कभी भी महिलाओं के मुद्दों पर बात नहीं की होगी, उन आंकड़ों पर बात नहीं की होगी कि कैसे लड़कियों को सेक्स स्लेव बनाया जा रहा है? क्या यह केवल हिन्दू महिलाओं को यौन संबंधों के दलदल में घसीटने वाली पत्रिका है, जो अपने यहाँ कहानियों के माध्यम से मुस्लिम और ईसाई पुरुषों के साथ हिन्दू महिला के लिव-इन संबंधों का महिमा मंडन कर रही है।

सम्पादक का भाजपा विरोध समझ में आता है, मगर कहानीकारों का इस प्रकार एजेंडा वाली कहानियां लिखना? और महिलाओं द्वारा ही सिचुएशनशिप जैसी अवधारणाओं पर लिखना? प्रश्न यह उठता है कि क्या यह महिलाएं अपने आप यह सब लिखती हैं या फिर एजेंडेवश यह सब लिखवाया जाता है?

और नई पीढ़ी किसी कमिटमेंट में नहीं रहना चाहती है, यह सब निर्धारण करने वाले गृहशोभा के सम्पादक कौन होते हैं? यौन सम्बन्धों में विविधता को ग्लैमराइज़ क्यों किया जा रहा है और यह लिखा जा रहा है कि नई पीढ़ी बस शरीर का साथ चाहती है, जब तक चाहे साथ रहे और फिर छोड़ दिया।

कोई महिला इस प्रकार के लेख नहीं लिख सकती क्योंकि उसे मल्टीपल सेक्स पार्टनर्स के चलते लड़कियों को मानसिक एवं शारीरिक समस्याओं के बारे में पता होगा।

परन्तु चूंकि सम्पादक को भाजपा और हिन्दू धर्म से घृणा है तो नाम छपने के लालच में हिन्दू लड़की को मुस्लिम लड़के और ईसाई आदमी के साथ लिव इन में रहने वाली कहानी को भी दिखाना है और महिलाओं की अपनी पत्रिका के नाम पर महिलाओं को बाजार में ले जाकर बैठा देना है।

मगर भारतीय जनता पार्टी से घृणा करने वाले गृहशोभा के सम्पादक की पत्रिका योगी जी के उत्तर प्रदेश के विज्ञापनों से भी भरी रहती है। महिलाओं की अपनी पत्रिका, जो भाजपा और हिन्दू धर्म से तहे दिल से घृणा करती है, उसमे कभी यह साहस नहीं हुआ कि हम भाजपा की सरकार से विज्ञापन नहीं लेंगे। इतना नैतिक साहस क्रांतिकारी सम्पादक में क्यों नहीं आता है? सारी क्रान्ति हिन्दू महिला को बाजार में बैठाने को लेकर ही क्यों है?

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