“रति, प्रीति, और धर्म सभी पत्नी के ही हाथों में होते हैं, अत: ज्ञानी को चाहिए कि वह अति क्रोधित होने पर भी पत्नी से कभी अप्रिय बात न करे”
“स्त्रियाँ आत्मा का सनातन और पवित्र जन्मक्षेत्र हैं; ऋषियों में भी क्या शक्ति है जो वह बिना स्त्री के प्रजा रच सकें?”
“जब पुत्र धरती के धूल में शरीर को सानकर पास आकर के पिता के अंगों से लिपट जाता है तो उससे और अधिक सुख क्या होगा?”
यह सभी वाक्य किसने और क्यों कहे, से महत्वपूर्ण है कि यह वाक्य किस ग्रन्थ में कहे गए हैं? जब भी हमारे सामने हमारे ग्रंथों की बात होती है तो उनमें स्त्रियों का रोना धोना, या फिर स्त्रियों पर अत्याचार दिखाया जाता है। मैं यह नहीं कहती कि अत्याचार नहीं होते थे, सुख और दुःख दो पहलू हैं और दोनों पहलुओं को ही हर ग्रन्थ में दिखाया गया है।
परन्तु यह जो ऊपर पंक्तियाँ हैं, वह महाभारत में शकुन्तला कह रही है, जब दुष्यंत उसे अपनाने से इंकार कर रहे हैं। दृश्य है कि वह भरत को लेकर राजसभा में आई है और आकर कह रही है कि राजा ने गन्धर्व विवाह किया था और अब वह उसे और उसके पुत्र को अपनाए और नाम दे।
वह यह भी कह रही है कि जिस दुरात्मा की आत्मा उससे संतुष्ट नहीं रहती है, काल उस दुष्कर्म एवं पाप कर्म करने वालों को नष्ट कर देता है।
शकुन्तला एवं दुष्यंत की कहानी हम सभी को बचपन से ही ज्ञात होती है। परन्तु शकुन्तला दुष्यंत को जो तक प्रस्तुत करती हैं, वह हमारे समक्ष नहीं आ सका है। वह कहती हैं कि यह ठीक है कि गान्धर्व विवाह किया गया था, परन्तु यह भी सत्य है कि ऐसा नहीं है कि कोई साक्षी नहीं है।
वह कहती है कि आदित्य, चंद्रमा, वायु, अग्नि, आकाश, धरती, जल, हृदय, यम, दिन, रात्रि, दोनों संध्या एवं धर्म यह सब मनुष्य के सम्पूर्ण चरित्रों को जानते हैं।
इसके बाद वह पत्नी की परिभाषा बताते हुए कहती हैं कि
“प्राचीन ज्ञानी लोग कहा करते हैं कि पति स्वयं गर्भ के स्वरुप में पत्नी में प्रविष्ट होकर फिर पुत्र के स्वरूप में जन्म लेता है, इसलिए पत्नी जाया कही जाती है!
प्रश्न यह है कि तर्क करने वाली स्त्री शकुन्तला को मात्र एक ऐसी स्त्री के रूप में समेट क्यों दिया गया जो मात्र रोती रहती है। ये हमारी स्त्रियाँ थीं, जिन्होनें तर्क जाना, अपने कर्तव्यों को जाना और अपनी परिभाषाओं को जाना।
संभवतया राजा दुष्यंत उसी प्रकार राज धर्म की मर्यादा में बंध गए हैं, जैसे राम बंध गए थे। शकुन्तला संभवतया यह भी पूछना चाहती है कि प्रेम किसने किया था पुरुष ने या राजा ने? वह कहना चाहती हैं कि यह प्रेम एक राजा ने ही किया था, पुरुष दुष्यंत ने नहीं। क्योंकि यदि पुरुष दुष्यंत विवाह करता तो वह वचन न देता कि इस मिलन से जन्म लेने वाला पुत्र ही उसका उत्तराधिकारी होगा। यह प्रेम राजा ने ही किया था क्योंकि वही यह वचन दे सकता था कि इस मिल्न से पैदा होने वाला पुत्र ही उसका उत्तराधिकारी होगा। और आज वही राजा इस भरी राजसभा में असत्य का साथ क्यों दे रहा है?
भारत में ऐसी ही स्त्रियाँ रही हैं! वह डरती नहीं है, प्रश्न उठाती है, प्रतिप्रश्न उठाती है, अपने अधिकार के लिए स्वाभिमान के साथ लड़ती है।
शकुन्तला भी ऐसी ही स्त्री हैं, जिन्होनें अपने पुत्र को बिना अपने पति की सहायता के इतना बलशाली बनाया है कि वह सिंह का मुंह खोलकर उसकेदांत गिन सकता है?
कथा का पटाक्षेप किस प्रकार होता है यह नाटक के उस प्रकार से एकदम भिन्न है, जो कालिदास ने हम सबके सामने रखी थी।
हम सभी ने जीवन दर्शन देने वाला ग्रन्थ महाभारत हिंदी में भी नहीं पढ़ा, क्योंकि यह भ्रम फैलाया गया कि यह ग्रन्थ भाइयों में संघर्ष कराएगा। जबकि यह ग्रन्थ संघर्ष को रोकने वाला ग्रन्थ है। शकुन्तला से लेकर उत्तरा तक सशक्त स्त्रियाँ हैं।
हर स्त्री का अपना संघर्ष है, हर स्त्री की अपनी कहानी है! जब शकुन्तला के चरित्र पर दुष्यंत प्रश्न उठाते हैं तो वह स्पष्ट कहती हैं कि
“हे राजन मेरु और सरसों के समान हम दोनों में भेद है, तुम धरती पर चलते हो और मैं आकाश में उड़ती हूँ। हे नृप, देखो मेरा प्रभाव कितना है; मैं महेंद्र, कुबेर और यम, वरुण इनके घरों में जा सकती हूँ।”
कितने स्पष्ट शब्दों में वह संकेत देती हैं कि वह मात्र प्रेम के कारण ही इस राज सभा में इस अपमान को सहन कर रही हैं।
यह हमारी स्त्रियाँ थीं, आँखों में आँखें डालकर सत्य कहने वालीं, हर तरीके से गलती को दिखाने वाली।
और हमारे घरों में यही ग्रन्थ नहीं मिलेगा “यह भाइयों में झगड़ा कराता है जी! अरे अब तो एक एक ही बेटा हमारे परिवारों में हो रहा है, तो भाइयों में क्या झगड़ा होना, बेहतर होगा कि हम अपने ग्रंथों को अपने अध्ययन में स्थान दें।