कई फ़िल्में जब रिलीज होती हैं तो कहा जाता है कि इस फिल्म में बोल्डनेस की हदें पार की गयी हैं, मगर कई बार हम ठहर कर सोचना ही नहीं चाहते कि बोल्डनेस क्या है? बोल्डनेस क्या छोटे छोटे कपड़ों में हैं? तो फिर छोटे छोटे कपड़े पहनकर करवाचौथ व्रत भी प्रगतिशीलता का प्रतीक होगा? और साड़ी पहने हुई वैज्ञानिक पिछड़ेपन की? दरअसल हम बोल्ड और अश्लील की अपनी अवधारणा का विकास ही नहीं कर पाए हैं?
हम इतने भ्रमित हैं, कि छोटे कपडे पहनने और लड़कियों द्वारा अश्लील तरीके से दी गयी गालियों को ही स्त्री स्वतंत्रता का पैमाना मान लेते हैं। हाल फिलहाल के कुछ दिनों में कई शब्द हैं, जो दूसरे अर्थों में अनूदित हो रहे हैं, और उन्हें बहुत गलत तरीके से समझा जा रहा है, जिनमें से एक शब्द है बोल्डनेस! कई बार खुद से पूछिए कि बोल्डनेस क्या है? जब हम अनुवाद के सिद्धांत पढ़ते हैं, तो शब्दों की यात्रा और उनके अनर्थ होने की यात्रा की भी कहानी होती है।
बोल्डनेस का अर्थ बाइबिल में है जीसस पर भरोसा रखना कि वह क्या है और वह हमारे लिए क्या कर सकता है? मूल रूप से बोल्डनेस उस भावना और साहस का नाम है जो हममे हमेशा सही काम करने की प्रेरणा देता है, और हमें डर पर विजय प्रदान करता है। बोल्डनेस का अर्थ सच का साथ देना और चाहे कितनी भी बाधाएं आ जाएं, बाधाओं के भय से सच के रास्ते को न छोड़ना!
अब आप सोचिये कि बोल्डनेस शब्द ने अश्लील तक होने में कितना लंबा सफ़र तय कर लिया है। यदि बोल्डनेस डर से मुक्त होकर सही का साथ देने का नाम है तो फिर आप सोचिये, कि असुरक्षा और कुंठा से ग्रसित गालियों में बोल्डनेस कहाँ है? किसी कहानी में यदि अश्लील शब्दों की भरमार है, अश्लील दृश्यों की भरमार है तो वह कहाँ से बोल्ड है?
मगर यदि कहानी अपने कथानक के स्तर पर एक साहस का परिचय दे रही है और वह अंत तक उसी विचार पर टिकी हुई है, तो उसे तो आप बोल्ड की श्रेणी में रखेंगे न? यदि नायिका अपने अस्तित्व के लिए कोई कदम उठाती है, और वह उस कदम पर टिकी रहते हुए अपने अस्तित्व को सार्थक करती है, तो उसका चरित्र बोल्ड होगा न कि छोटे छोटे कपडे पहनकर बड़ा सा मंगलसूत्र डालकर वाइन से करवाचौथ तोड़ने से?
एक फिल्म आई थी आस्था, रेखा और ओमपुरी की! कहा गया बहुत बोल्ड फिल्म है, मगर उसमें अश्लील दृश्यों के अतिरिक्त और क्या था? उसमें हद दर्जे के अश्लील दृश्य थे और अंत में रेखा द्वारा अपनी “गलतियों” की माफी मांगते हुए ओमपुरी का बड़ा दिल दिखाते हुए माफ़ करना था।
इस फिल्म में क्या बोल्ड था, कथानक और विचार के स्तर पर इतनी छिछोरी और हल्की फिल्म को बोल्ड का नाम देना कहाँ तक उचित था? ऐसी ही एक और फिल्म हाल ही में आई थी, शिल्पा शेट्टी, शाइनी आहूजा और केके, कंगना रानौत आदि से सजी लाइफ इन अ मेट्रो। महानगरीय उलझन की बहुत ही खूबसूरत कहानी थी! उलझे हुए रिश्ते, टूटते हुए रिश्ते! केके मेनन का रिश्ता कंगना रानाउत के साथ है, शिल्पा शेट्टी उसकी पत्नी है। आधुनिक, मॉडर्न ड्रेस पहने हुए, डिज़ाईनर हेयरस्टाइल, डिज़ाईनर इयररिंग से सजीधजी शिल्पा शेट्टी!
कहानी के अंत में के के मेनन अपनी पत्नी के सामने क़ुबूल करता है कि उसका रिश्ता कंगना के साथ था, और कई सालों से था, क्योंकि कंगना उसे छोड़कर चली गई है। और तभी शिल्पा शेट्टी जिसका मन ही केवल शाइनी आहूजा के लिए बहका था, वह भी अपने पति के सामने स्वीकारती है, और उसका पति उससे पूछता है “बेटी तो मेरी ही है न!” यह एक ऐसा दृश्य था, जहां पर स्त्री के अस्तित्व की आवश्यकता थी। यह किसी भी स्त्री के लिए सबसे बड़े अपमान की बात मेरे ख्याल से है और यहीं पर फिल्म कमज़ोर पड़ जाती है! वर्ष 2007 के आधुनिक समाज में रिलीज़ हुई फिल्म वर्ष 1982 में रिलीज़ हुई फिल्म अर्थ के अंत के सामने कमज़ोर पड़ गयी है। हर तरह के बोल्ड दृश्यों से भरी फिल्म कथानक के स्तर पर बोल्ड फिल्म के सामने एकदम बौनी नज़र आती है।
प्रश्न यह है कि जो आपकी बोल्डनेस है, जो साहस है वह किसके लिए है? स्त्रियों के लिए तो खासतौर पर अब यह समय आ गया है कि वह अपनी समझ और सोच विकसित करे और बोल्डनेस और अश्लीलता को पहचानते हुए यह तय करे कि उसे किसका साथ देना है? बोल्डनेस का, समाज के सामने सही का साथ देने का या फिर बाहरी चमक दमक में लिपटी बोल्डनेस की चाशनी वाली संकुचित सोच का, जिसमें उसे केवल एक वस्तु बनाकर पेश किया जाता है? एक बोल्डनेस है जो आपको आपकी बात को दृढता से रखने की हिम्मत देती है और दूसरी बोल्डनेस वह है जो आपको कभी अंडरवियर, तो कभी डियो, तो कभी महज़ फेविकोल बेचने के लिए वस्तु का टुकड़ा मात्र बनाती है।